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नई दिल्ली: भारत में प्लास्टिक कचरे का उपयोग अब सड़कों के निर्माण में किया जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण संरक्षण हो रहा है बल्कि मजबूत और टिकाऊ सड़कों का निर्माण भी संभव हो रहा है।

'लिटर टू लेन' सीरीज के चौथे और अंतिम भाग में बताया गया कि प्लास्टिक सड़कों की स्थिति और उनके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

भारत में पहली प्लास्टिक सड़क का निर्माण 2002 में तमिलनाडु के मदुरै में किया गया था। इसके बाद से देश के कई हिस्सों में इस तकनीक को अपनाया गया है।

विशेषज्ञों के अनुसार, प्लास्टिक मिश्रित सड़कें अधिक मजबूत होती हैं और इनकी मरम्मत की आवश्यकता भी कम होती है। ये सड़कें भारी बारिश और तापमान के उतार-चढ़ाव को सहन करने में भी सक्षम होती हैं।

तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और दिल्ली सहित कई राज्यों ने इस तकनीक को अपनाते हुए प्लास्टिक सड़कों का निर्माण किया है।

इस प्रक्रिया में बेकार प्लास्टिक कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डामर में मिलाया जाता है, जिससे सड़क का निर्माण अधिक मजबूत होता है।

भारत सरकार ने प्लास्टिक सड़कों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया है। पर्यावरणविद् इसे प्लास्टिक कचरे के निपटारे का बेहतरीन तरीका मान रहे हैं।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने इस तकनीक के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर चिंता भी जताई है और इसके व्यापक अध्ययन की आवश्यकता पर जोर दिया है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने भी प्लास्टिक मिश्रित सड़कों के निर्माण को प्राथमिकता देने की घोषणा की है।

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