
शीर्ष अदालत ने इसे “एक बहुत ही स्वागत योग्य तरीका” बताया, साथ ही यह भी कहा कि सामान्य आपराधिक कानून साइबर अपराधियों को रोकने में “सफल” साबित नहीं हो रहे थे। यह टिप्पणी साइबर अपराधों से निपटने के लिए कठोर उपायों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि साइबर अपराधों की बढ़ती प्रकृति और इनकी जटिलता को देखते हुए, पारंपरिक कानूनी ढांचे अक्सर पर्याप्त नहीं होते हैं। साइबर अपराधी अक्सर डिजिटल दुनिया में अपनी पहचान छिपाते हैं और विभिन्न राज्यों या यहां तक कि देशों से भी अपनी गतिविधियों को अंजाम देते हैं, जिससे उन्हें पकड़ना और उन पर मुकदमा चलाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में, तमिलनाडु द्वारा निवारक हिरासत कानूनों का उपयोग इन अपराधियों को समाज से दूर रखने और आगे के अपराधों को रोकने में प्रभावी साबित हो रहा है।
न्यायालय का यह समर्थन अन्य राज्यों को भी साइबर अपराधों से लड़ने के लिए इसी तरह के सख्त उपाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। हालांकि, निवारक हिरासत के उपयोग को लेकर हमेशा मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित चिंताएं होती हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी दर्शाती है कि साइबर सुरक्षा के महत्व को देखते हुए, ऐसे उपायों की आवश्यकता पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते उनका उपयोग कानून के दायरे में और उचित सावधानी के साथ किया जाए।