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तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के राज्यपाल से उन पत्रों का विवरण मांगा, जो उन्होंने राज्य सरकार को राज्य विश्वविद्यालयों के वाइस-चांसलर (VC) की नियुक्ति से संबंधित सर्च-कम-सेलेक्शन कमेटी को लेकर भेजे थे।

अदालत ने राज्यपाल की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि उन्होंने अपनी आपत्तियां पहले ही स्पष्ट कर दी होती, तो राज्य सरकार शायद उन्हें स्वीकार कर लेती।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से पूछा, “राज्यपाल द्वारा भेजे गए किसी एक पत्र का उदाहरण बताएं, जिसमें उन्होंने राज्य सरकार को UGC नियमन का पालन न करने की बात कही हो।”

तमिलनाडु सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन ने अदालत को बताया कि ये पत्र बिलों से संबंधित नहीं थे, बल्कि राज्य अधिनियम के तहत चांसलर की शक्तियों को लेकर थे। उन्होंने कहा कि राज्य अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव राज्यपाल की नियुक्ति की शक्तियों को लेकर है।

पीठ ने कहा, “यदि अधिनियम में चांसलर को वीसी नियुक्त करने का अधिकार है, तो UGC के नियमन का मुद्दा क्यों उठा?” इसके जवाब में विल्सन ने कहा कि राज्यपाल का पत्र चयन समिति के गठन से संबंधित था।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह मुद्दा सरकार के संज्ञान में पहले ही लाया गया था। अदालत ने कहा कि अगर संशोधन अधिनियम राज्यपाल की शक्तियों को बदलता है, तो यह मामला उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में बहस के योग्य है।

अंत में, पीठ ने राज्यपाल से स्पष्ट किया कि यदि यह बिल और अधिनियम में विरोधाभास है, तो इसे स्पष्ट करने की जरूरत है।

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