
एआईसीसी ओबीसी विभाग के अध्यक्ष अनिल जयहिंद ने बताया कि जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और अर्जुन सिंह शिक्षा मंत्री थे, तब संविधान का ९३वां संशोधन पारित कर अनुच्छेद १५(५) जोड़ा गया। इस अनुच्छेद के तहत दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों को शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान किया गया था। शुरुआत में यह आरक्षण केवल सरकारी संस्थानों में लागू हुआ, लेकिन निजी संस्थानों में इसे अदालत में चुनौती दी गई। जनवरी २०१४ में यह तय हुआ कि सरकार निजी संस्थानों में भी आरक्षण दे सकती है।
जयहिंद ने कहा कि पिछले ग्यारह वर्षों से मोदी सरकार ने अब तक इस पर कोई कानून नहीं बनाया है, जिससे वंचित और शोषित वर्गों को शिक्षा में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। एआईसीसी एससी विभाग प्रमुख राजेश लिलोठिया ने कहा कि आरक्षण की ५० प्रतिशत सीमा सामाजिक न्याय में सबसे बड़ी बाधा है और कांग्रेस इसे हटाना चाहती है। पार्टी ने मांग की है कि सरकार जल्द से जल्द कानून लाकर वंचित वर्गों को उनका हक दिलाए।