
यह घटना तब हुई जब वन विभाग के कर्मी कथित तौर पर वन भूमि पर अवैध रूप से निर्मित अस्थायी झोपड़ियों को हटाने के लिए पहुंचे थे। इस टकराव ने क्षेत्र में भूमि अधिकारों और वन संरक्षण के बीच के पुराने विवाद को एक बार फिर सतह पर ला दिया है, जिससे स्थानीय प्रशासन की चिंताएं बढ़ गई हैं।
आदिवासी निवासियों का आरोप है कि वे पीढ़ियों से इन जमीनों पर रहते और खेती करते आ रहे हैं, तथा यह उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। उन्होंने वन विभाग की इस कार्रवाई को अपने पारंपरिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन बताया और झोपड़ियों को हटाने का कड़ा विरोध किया। आदिवासियों ने एकजुट होकर वन अधिकारियों को कार्रवाई करने से रोकने का प्रयास किया, जिससे स्थिति बिगड़ गई और आखिरकार दोनों पक्षों के बीच धक्का-मुक्की व झड़प में बदल गई।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे केवल सरकारी वन भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का अपना कर्तव्य निभा रहे थे। उनका दावा है कि ये झोपड़ियां अवैध रूप से बनाई गई हैं और वन कानूनों का उल्लंघन करती हैं, जिससे वन क्षेत्र को नुकसान पहुंच रहा है। स्थानीय प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप किया है और दोनों पक्षों के बीच सुलह कराने तथा शांति बहाल करने का प्रयास कर रहा है। ऐसे मामलों में अक्सर आदिवासियों के भूमि अधिकारों और वन संरक्षण के बीच संतुलन साधने की चुनौती होती है, जिसके लिए उचित संवाद और स्थायी समाधान की आवश्यकता है।