युवा पीढ़ी अब सरकारी नौकरियों, सेना में भर्ती होने या अपना व्यवसाय शुरू करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे पारंपरिक याक पालन की ओर उनका रुझान कम हो गया है।
याक पालक, जो कभी लद्दाख के दूरदराज के इलाकों में एक सामान्य दृश्य थे, अब संख्या में घट रहे हैं। इस पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि यह जीवन कठिन और चुनौतीपूर्ण है, जिसमें मौसम की अनिश्चितताओं और चराई के लिए लंबी दूरी तय करने जैसी कई परेशानियां शामिल हैं। इसके विपरीत, शिक्षा और अन्य करियर विकल्प युवाओं को अधिक स्थिर और आरामदायक भविष्य का वादा करते हैं।
हालांकि, याक पालन की यह घटती परंपरा लद्दाख की सांस्कृतिक विरासत और जैव विविधता के लिए चिंता का विषय है। याक न केवल स्थानीय लोगों के लिए दूध, ऊन और मांस का स्रोत हैं, बल्कि वे उच्च ऊंचाई वाले पारिस्थितिकी तंत्र का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यदि इस परंपरा को संरक्षित करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में लद्दाख एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और पारिस्थितिक विरासत खो सकता है।
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