सावन में गोंड पेंटिंग से जीवंत हुए आदिवासी घर.
मंडला, मध्य प्रदेश: सावन के पवित्र महीने में, मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में, विशेषकर मंडला और डिंडोरी जिलों में.

गोंड पेंटिंग से घर-घर में रौनक आ गई है। यह प्राचीन आदिवासी कला सिर्फ सजावट का माध्यम नहीं, बल्कि परंपरा, संस्कृति और आध्यात्मिक विश्वास का प्रतीक है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।
गोंड कलाकार कभी भी किसी औपचारिक प्रशिक्षण से नहीं गुजरते; बल्कि, यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से और देखकर सीखी जाती है। महिलाएं अपने घरों की दीवारों को प्रकृति, देवताओं और दैनिक जीवन के दृश्यों से सजाती हैं, जिनमें जंगल के जानवर, पेड़, नदियाँ और पौराणिक कथाओं के चित्र प्रमुख होते हैं। यह पेंटिंग न केवल घरों को सुंदर बनाती है, बल्कि यह भी माना जाता है कि यह सौभाग्य और समृद्धि लाती है। सावन का महीना, जब प्रकृति अपने चरम पर होती है, इन कलाकृतियों को बनाने और प्रदर्शित करने के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
यह अनूठी कला शैली केवल आदिवासी घरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाई है। गोंड पेंटिंग का यह निरंतर अभ्यास आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कलात्मक कौशल का एक जीवंत प्रमाण है।